ढोल-दमाऊ बजाने की विभिन्न शैलियों का वर्णन- ढोल सागर नामक ग्रंथ में
है। जिसमें ढोल बजाने की कुछ निम्न तालें बताई गई हैं-
बढे (बधाई)– यह ताल प्रत्येक मंगल पर्व तथा उत्सव आदि के आरंभ में प्रस्तत की
है।
धुमेल- यह देवोपासना की ताल है।
रहमानी ताल- बारात के साथ मार्ग पर चलते हुए बजायी जाती है।
नौबत- यह दिन के अलग-अलग प्रहरों में मंदिरों में बजाई जाती है।
उत्तराखंड की अधिकांश धुनें आदिम स्वरों पर मिलेगी किंतु वर्तमान समय तक आते-आते दुर्गा ,भोपाली, केदार, शिवरंजनी ,मालकोश, पहाड़ी ,देश ,पीलू ,सारंग आदि जैसी छवि यहां की धुनों में सरलता से देखी जा सकती है।
आपको बतादे कि ढ़ोल उत्तराखंड का राजकीय वाद्य यंत्र है।
ढोल दमाऊ पर्वतीय सांस्कृति की विरासत के रूप में जाने जाते हैं। इनके बिना कोई शुभ काम जीवन में पूरे नहीं होते। त्योहार व लोक उत्सव तो उनके बिना अधूरे रहते हैं। ढोल और दमाऊ दोनों हर्ष, उल्लास और खुशी के प्रतीक हैं।
धन्यवाद
देवभूमि कैरियर पॉइंट, उत्तराखंडhttps://youtu.be/rNXjUFse0qc